Jyutputrika fast brings auspicious results

 जीऊतपुत्रिका व्रत से होती है शुभ फलों की प्राप्ति, देखें क्या है खास

Jivitputrika-Vrat

Jyutputrika fast brings auspicious results

जीऊतपुत्रिका व्रत को हिन्दू धर्म में महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन भगवान जीमूतवाहन की विधिपूर्वक पूजा-अर्चना होती हैं। हर साल आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर जितिया व्रत किया जाता है। इसे जीऊतपुत्रिकाऔर जिउतिया व्रत के नाम से भी जाना जाता है। यह पर्व अधिक उत्साह के साथ 3 दिनों तक मनाया जाता है। शुभ अवसर पर महिलाएं निर्जला व्रत करती हैं और इस व्रत की शुरुआत नहाय खाय के साथ होती है। जीऊतपुत्रिका व्रत बेहद महत्वपूर्ण और कठिन व्रतों में से एक माना जाता है।

जीऊतपुत्रिका व्रत में माताएं अपनी संतानों की सलामती व अच्छे स्वास्थ्य और लंबी आयु के लिए पूरे दिन और पूरी रात निर्जला उपवास रखती हैं। इसे जितिया व्रत के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन माताएं भगवान जीमूतवाहन की विधिवत पूजा-अर्चना करती हैं। इस बार जितिया व्रत 25 सितंबर यानी बुधवार के दिन रखा जाएगा। इन दिन माताएं अपने संतान की लंबी उम्र और स्वास्थ्य के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। इस दिन सूर्यदेव को अर्घ्य दिया जाता है।

जितिया व्रत विवाहित महिलाएं संतान सुख की प्राप्ति के लिए रखती हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार इस व्रत को करने से संतान को दीर्घायु का आशीर्वाद प्राप्त होता है। व्रत करने से भगवान श्रीकृष्ण संतान की सदैव रक्षा करते हैं। इसके अलावा संतान से जुड़ी सभी तरह की समस्या दूर होती है। 

जीऊतपुत्रिका होता है तीन दिनों का त्योहार

जीऊतपुत्रिका एक दिन का व्रत नहीं है बल्कि इस पर्व को तीन दिन तक मनाया जाता है। 

प्रथम दिन- जीऊतपुत्रिका व्रत के दिन महिलाएं स्वच्छता से स्ननान कर पूजा करती हैं। रात के समय स्त्रियां शतपुतिया की सब्जी या नूनी का साग खाती है। 

दूसरा दिन- व्रत के दूसरे दिन को खर जितिया कहा जाता है। यह खुर जितिया अष्टमी के दिन होता है। इस दिन स्त्रियां निर्जला व्रत रहती हैं। इस व्रत में व्रती स्त्रियां रात में भी पानी नहीं पीती हैं।

तीसरा दिन- तीसरे दिन पारण होता है। इस दिन व्रत के पारण के बाद भोजन ग्रहण किया जाता है और गले लाल धागे के साथ माताएं जिउतिया पहनती हैं।

जीऊतपुत्रिका व्रत से जुड़ी पौराणिक कथा

इस व्रत को माएं बहुत श्रद्धा से करती हैं। जीऊतपुत्रिकाव्रत से जीमूतवाहन की कथा जुडी हुई है। कथा के अनुसार गन्धर्वों के राजकुमार जीमूतवाहन थे। वे बड़े परोपकारी थे। वृद्धावस्था में जीमूतवाहन के पिता वानप्रस्थ आश्रम जाते समय उन्हें राज-पाट देकर गए। लेकिन सरल जीमूतवाहन का राजा बनकर मन नहीं लगा। वे अपने साम्राज्य को अपने भाइयों पर छोडक़र पिता की सेवा करने के लिए जंगल चले गए। जंगल में उनकी शादी मलयवती नाम की राजकन्या से हो गयी। एक दिन जंगल में कहीं जाते समय जीमूतवाहन को एक वृद्धा रोती हुई दिखाई दीं। उनके पूछने पर बुजुर्ग ने रोते हुए कहा कि मैं नागवंश की स्त्री हूं और मेरा एक ही बेटा है। पक्षियों के राजा गरुड़ के सामने नागों ने उन्हें रोज खाने के लिए नाग सौंपने की प्रतिज्ञा की है। इस बलि के क्रम में आज मेरे बेटे शंखचूड़ की बलि दी जाएगी।

जीमूतवाहन ने बुजुर्ग से कहा डरिए मत मैं आपके बेटे की रक्षा करूंगा। आज उसकी जगह पर मैं खुद जाऊंगा और अपने आपको उसके लाल कपड़े में ढककर वध्य-शिला पर लेट जाऊंगा। इतना कहकर जीमूतवाहन ने शंखचूड़ के से लाल कपड़ा ले लिया और वे उसे लपेटकर गरुड़ को बलि देने के लिए चुनी गई वध्य-शिला पर लेट गया। उसके बाद गरुड़ तेजी से आए और वे लाल कपड़े में ढके जीमूतवाहन को पंजे में दबाकर पहाड़ की ऊंचाई पर जाकर बैठ गए। अपनी चोंच में दबे जीव को रोते देखकर गरुडज़ी बड़े हैरान हो गए। उन्होंने जीमूतवाहन से पूछा कि वह कौन है। जीमूतवाहन ने सारी बात सुनायी। गरुडज़ी उसकी बहादुरी और हिम्मत से बहुत प्रभावित हुए। जीमूतवाहन पर प्रसन्न होकर गरुडज़ी ने उनको जीवनदान दे दिया और नागों की बलि न लेने का वरदान भी दे दिया। इस तरह जीमूतवाहन के साहस से नागों की रक्षा हुई। उसी समय से बेटे की रक्षा के लिए जीमूतवाहन की पूजा प्रारम्भ की गयी।

आश्विन मास के कृष्ण अष्टमी के प्रदोषकाल में पुत्रवती स्त्रियां जीमूतवाहन की पूजा करती हैं। कैलाश पर्वत पर भगवान शंकर माता पार्वती को कथा सुनाते हुए कहते हैं कि आश्विन कृष्ण अष्टमी के दिन उपवास रखकर जो स्त्रियां शाम को प्रदोषकाल में जीमूतवाहन की पूजा करती हैं और कथा सुनने के बाद पुजारी को दक्षिणा देती है, वह पुत्र-पौत्रों का सुख पाती हैं। व्रत का पारण दूसरे दिन अष्टमी तिथि के खत्म होने के बाद किया जाता है। यह व्रत बहुत फलदायी है होता है और स्त्रियां बहुत श्रद्धा से इस व्रत को करती हैं।

जीऊतपुत्रिका व्रत से जुड़ी सामग्री
आम के पत्ते, सत्पुतिया के पत्ते, पान के पत्ते, गन्ना, कुशा, सिंदूर, जनेऊ, मौली, दूध, अक्षत, धूप दीप, नदी के किनारे की मिट्टी, बांस की डलिया, चना प्रसाद भीगे हुए, जितिया का लाल धागे का(माला) जिसमें जीमूत वाहन का लॉकेट हो, पान सुपारी, बनाए हुए प्रसाद जैसे चूरमा ठेकुआ इत्यादि।

जीऊतपुत्रिका व्रत का पारण भी है खास 
जीऊतपुत्रिका के दूसरे दिन पारण होता है। पारण की भी खास तैयारी होती है। पारण के दिन ब्राह्मणों को भोजन कराकर दान दिया जाता है। साथ ही इस दिन व्रती महिलाएं लाल रंग के धागे में सोने की जिउतिया पहनती हैं और तरह-तरह के पकवान बनाए जाते हैं।

अर्जुन के पोते को भगवान कृष्ण ने किया था जीवित
जिउतिया व्रत का संबंध महाभारत काल से है। प्रचलित कथा के अनुसार निंद्रा अवस्था में पांडवों के सभी बेटों व अभिमन्यु के अजन्मे बेटे (अर्जुन का पोता) तक को मार दिया। इसके बाद भगवान कृष्ण ने अपने दिव्य शक्ति से अर्जुन के पोते को जीवित कर चमत्कार कर दिया। इस कारण जन्म के बाद बच्चे का नाम जीऊतपुत्रिकारखा गया. इसी धार्मिक मान्यता के आधार पर माताएं अपने पुत्र की लंबी आयु के लिए यह व्रत रखती है। इस व्रत मे उपवास (प्रारंभ) वाले दिन सूर्योदय से पहले ही कुछ खाने-पीने का प्रथा है।

जितिया व्रत के पारण का समय
जो महिलाएं 24 सितंबर को जितिया व्रत रखेंगे वो व्रत का पारण 25 की शाम में करेंगी। तो वहीं जो महिलाएं ये व्रत 25 सितंबर को रखेंगी वो इस व्रत का पारण 26 सितंबर को सूर्योदय के बाद करेंगी।

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